स्टील मज़दूरों की सफल संयुक्त हड़ताल – चेत जाओ भाजपा सरकार

न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (एन.टी.यू.आई) देश भर में सार्वजनिक क्षेत्र के स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) के 150,000+ कर्मचारियों को उनकी सघन जुझारू संयुक्त हड़ताल के लिए बधाई देता है। यह हड़ताल स्थायी, ठेका और कैज्युअल मज़दूरों को जो कि बेहतर वेतन और फैक्ट्रीयों में काम की स्थिति की बेहतरी के लिए एक ऐसे प्रबंधन के खिलाफ़ संघर्षरत रहे है जिसने जान-बूझ कर पिछले साढ़े चार से सामूहिक समझौते को लटका रखा है, को साथ लाने में अभूतपूर्व रूप से सफल रही।

हड़ताल की कार्रवाई कल विशाखापट्टनम स्टील प्लांट (वीएसपी) में एक सघन हड़ताल के साथ शुरू हुई। वीएसपी कार्यकर्ता साल की शुरुआत से ही अपने प्लांट के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। भिलाई, बरनपुर और दुर्गापुर के अन्य इस्पात संयंत्रों में भी हड़ताल सफल रही। बोकारो, भद्रावती, राउरकेला और सलेम में सम्पूर्ण हड़ताल रही।
बोकारो में, एन.टी.यू.आई संबद्ध झारखंड क्रांतिकारी मज़दूर यूनियन और जय झारखंड मज़दूर समाज न सिर्फ सभी स्थायी और ठेका मज़दूरों को एकजुट करने में सफल रहे, बल्कि हड़ताल को टाऊनशिप तक ले गए जिसके परिणामस्वरूप हड़ताल पूर्ण रूप से सफल रही।

इस हड़ताल में जो एकता हम ने देखी है वह उन स्थायी मज़दूर यूनियनों के लिए एक सबक है जो हड़ताल में शामिल होने में या तो हिचकते रहे या जिन्होंने इस कार्रवाई का विरोध किया। जहां हड़ताल सर्वाधिक सफल रही, वहाँ से जो बात उभर कर सामने आई है वह यह है कि आज उत्पादन पर ठेका मज़दूरों का नियंत्रण स्थायी मज़दूरों से अधिक है। मज़दूरों को अगर आगे बढ़ना है तो एकजुट हो कर, एक साथ चलना होगा। ठेका मज़दूर जिनकी गिनती आज कहीं अधिक है, उन्हें साथ लिए बिना स्थायी मज़दूर आगे नहीं बढ़ सकते।

यह हड़ताल सेल प्रबंधन और सभी मालिकों को एक चेतावनी है। इस महामारी की आड़ में मालिक बेशक मजदूरी पर हमला करने में सफल रहे है लेकिन उन्हें इस गलतफ़हमी में बिलकुल नहीं रहना चाहिए कि यूनियन की शक्ति में गिरावट आई है। सेल ने अब तक 1 जनवरी 2017 से बकाया मज़दूरी के भुगतान के लिए पर्याप्त वित्तीय आवंटन नहीं किया है। आज भी, सेल केवल अपने स्थायी मज़दूरों की संख्या के आधार पर अपनी उत्पादकता की गणना करता है जबकि फैक्ट्री में ठेके पर काम करने वाले मज़दूरों की संख्या स्थायी मज़दूरों की गिनती से ढाई गुना अधिक है।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार चेत जाए। यह सरकार कानून बदल कर यूनियन बना सकने के अधिकार और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार को बस कागज़ पर ही खत्म कर सकती है। वह हड़ताल को गैर-कानूनी तो घोषित कर सकती है लेकिन एकजुट मज़दूर वर्ग को हरा नहीं सकती। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि मज़दूर वर्ग का हर सदस्य एक ‘कोविड योद्धा’ रहा है। सेल के कर्मचारियों ने इस महामारी के बीच भी लगातार राष्ट्र के लिए स्टील का निर्माण किया और जब देश में लाॅकडाउन लगाया गया क्योंकि इस हृदयहीन और दुराचारी सरकार के पास महामारी की दूसरी लहर से लड़ने के लिए कोई तैयारी नहीं थी, वे सेल के ही कार्यकर्ता थे जिन्होंने निजी क्षेत्र के कंपनियों से कहीं अधिक चिकित्सय ऑक्सीजन का उत्पादन किया। उन्होंने दिन-रात काम किया, ओवरटाइम काम किया और रविवार को भी काम किया। सेल के मज़दूरों ने अपने उद्यम से लोगों की जान बचाने में मदद की जबकि वे नेता जिन्हें जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए वोट दे कर चुना गया था, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। इन में से लगभग 1500+ मज़दूर कोविड वायरस की भेंट चढ़ गए। इन में से जो स्थायी मज़दूर नहीं थे, उनके परिवारों को अब तक मुआवजा भी नहीं दिया गया है।

आज मज़दूर वर्ग के ये योद्धा कठोर और अमानवीय सरकार के सामने खड़े हुए। वे बर्खास्तगी और उत्पीड़न की धमकियों के खिलाफ़ खड़े हुए। उन्होंने अपने मोर्चे, अपनी रैलियों, अपने धरनों और अपनी जनसभाओं में हिंसा भड़काने की साजिशों को परास्त किया। जो जुल्म का डटकर मुकाबला करते हैं उनकी हमेशा जीत होती है।

मज़दूर वर्ग के लड़ाके समाज के योद्धा होते हैं। वे निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज के लिए लड़ाई लड़ते हैं। इन योद्धाओं को सलाम।

मज़दूर एकता जिंदाबाद!
इंकलाब जिंदाबाद!

गौतम मोदी
महासचिव