बजट 2024: मुंह में राम बगल में छुरी

1 फरवरी 2024: वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण ने 2024 का अंतरिम बजट पेश करते हुए अपने भाषण में बढ़चढ़ कर भाजपा सरकार की तारीफ़ें करते हुए कहा कि सरकार ने पिछले 10 सालों में देश की अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदल कर रख दिया है, लेकिन यह नहीं बताया कि इस बदलाव का लाभ किसे मिला है और 10 साल पहले अर्थव्यवस्था में मौजूद करोड़ों नौकरियां आज कहां गायब हो गईं हैंयह अंतरिम बजट पिछले 10 सालों में भाजपा सरकार द्वारा मेहनतकश लोगों और गरीबों से किए गए उन अनगिनत खोखले वादों का दस्तावेज है, जो अभी भी अधूरे हैं।

जनहित योजनाओं पर खर्च में गिरावट

स्वास्थ्य और शिक्षा पर सरकार जो पैसा खर्च करती है, उसमें पिछले 10 सालों में असल मायनों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यानी राशि तो बढ़ी है पर महंगाई में उसके अनुपात में कहीं ज्यादा बढ़त हुई है तो कुल मिला कर ख़र्च वास्तविक रूप से नहीं बढ़ा है। यही बात मनरेगा और आईसीडीएस (आंगनवाड़ी) कार्यक्रम सहित अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर होने वाले खर्च के लिए भी सच है।

2023-24 के लिए तथाकथित आयुष्मान भारत और पीएमआवास योजना के लिए बजट में रखा गया पैसा खर्च ही नहीं हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्गों और रेलवे के अलावा, सिंचाई कार्यों, ग्रामीण सड़कों, छोटी उत्पादन इकाइयों, अनुसंधान और विकास, रेल और सड़क सुरक्षा आदि सहित कई प्रमुख क्षेत्रों में पूंजीगत व्यय या तो हुआ ही नहीं है या अधूरा है। यह सभी ऐसे क्षेत्र हो सकते थे जो इन परियोजनाओं में कार्यरत मज़दूरों के लिए बेहतर और स्थिर कमाई और रोज़गार के अवसर प्रदान कर सकते थे, लेकिन यह साफ़ है कि सरकार में उन कार्यों को पूरा करने की ना तो चाह है ना ही इच्छाशक्ति, जिसमें बड़े कॉर्पोरेट घरानों का मुनाफ़ा शामिल ना हो।

यह बजट करोड़ों लोगों को विभन्न प्रकार के छोटेमोटे स्वरोजगार के लिए दिए गए ऋणों से भरा पड़ा है। अंतरिम बजट के अनुसार सरकार द्वारा स्वरोजगार के लिए दिए गए ऋण की कुल संख्या 75 करोड़ से अधिक है। इस बात का कहीं ज़िक्र नहीं है कि इन ऋणों का परिणाम क्या है और इन ऋणों से कितने लोगों को सुरक्षित, स्थिर और टिकाऊ नौकरियाँ प्राप्त हुई हैं। हालाँकि, यहाँ एक अपवाद है, बजट में बताया गया है कि प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत 78 लाख रेहड़ी पटरी लगाने वालों को ऋण मिला है और इन में से केवल 2.3 लाख ही उधार चुका रहे हैं। इसका मतलब यह है कि उधार लेने वाले 100 रेहड़ी लगाने वालों में से केवल 3 ने अपना ऋण चुकाया है। 100 में से बाकि बचे 97 या फिर 75 लाख से भी अधिक विक्रेताओं में दुर्दशा के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है

सरकार यह घोषणा करके अपनी उदारता का परिचय देती है कि लगभग 80% आबादी को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से भोजनराशन उपलब्ध कराया गया है। हालाँकि, पिछले 10 सालों में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के सरकार के दावे के साथ यह मेल नहीं खाता। उज्वला योजना की पहुंच को सरकार ने गरीबी का खात्मा करने वाली जादू की छड़ी के रूप में बताया हैसच्चाई यह है कि उज्वला केवल गुजरात, झारखंड और त्रिपुरा के लगभग 80% घरों तक पहुंचती है। इसके अलावा, रसोई गैस की ऊंची कीमतोें के कारण 1 करोड़ 10 लाख उज्वला लाभार्थियों ने पिछले साल गैस का एक भी सिलेंडर नहीं खरीदा और 90 लाख ने साल में केवल एक सिलेंडर खरीदा। इससे हमें पता चलता है कि कम से कम 2 करोड़ परिवार, जो उज्वला के लाभार्थीहो सकते हैं, खाना पकाने के लिए असुरक्षित और हानिकारक ईंधन पर निर्भर हैं क्योंकि सब्सिडी वाली रसोई गैस भी उनकी पहुंच से बाहर है।

कुछ के लिए विकास, बहुतों के लिए मंदिर

बीएस पिछले 10 वर्षों में बनाए गए हवाई अड्डों की बढ़ती संख्या और शुरू किए गए नए हवाई मार्गों की संख्या का बखान करता है, लेकिन यह नहीं बताता कि द्वितीय श्रेणी की 25% सीटें गायब हो गई हैं और उनकी हमारी ट्रेनों में महंगी, परिवर्तनशील कीमतों वाली, वातानुकूलित सीटों ने ले ली हैं, जो उन आम लोगों की पहुंच से बाहर हैं जो देश भर में यात्रा करने के लिए रेल पर निर्भर हैं।

हम जानते हैं कि पिछले 10 सालों में लगभग 2 करोड़ मज़दूर शहरों से अपने गाँवों की ओर लौटे। कृषि में नियोजित मज़दूरों की गिनती तनी ही संख्या से बढ़ गई है। हम यह भी जानते हैं कि कृषि क्षेत्र संकट से जूझ रहा है और किसान मुश्किल से अपना गुजारा कर पा रहे हैं। इन दोनों को एक साथ देखें तो पता चलता है कि 2 करोड़ शहरी मज़दूरों को मजबूरी में अपने गाँव लौटना पड़ा क्योंकि उनकी नौकरियाँ चली गईं और इससे गाँव में उनके परिवार पर दबाव और बढ़ गया।

घरेलू खपत कम है और घरेलू बचत घट रही है क्योंकि मेहनतकश लोगों को अपनी रोजमर्रा की रूरतों को पूरा करने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। इससे हमें यह भी पता चलता है कि पिछले 10 सालों में जहां अमीर और ज्यादा अमीर हो गए हैं, वहीं मेहनतकश लोगों के परेशानियों का बोझा और बढ़ गया है।

भाजपा कहती है कि उसने अतीत की हर सरकार की तुलना में अर्थव्यवस्था को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया है, लेकिन सच्चाई यह है कि पिछले 10 सालों में देश पर कर्जा और बढ़ा है। आज केंद्र सरकार का हर पांच में से एक रुपया ब्याज चुकाने में चला जाता है। यह रकम उस मूल कर्ज़ की भरपाई से इतर है जो सरकार ने पहले ही ले रखे हैं।

कई मायनों में देश में सबसे बड़ी संख्या में मज़दूरों को रोजगार प्रदान करने वाली योजना मनरेगा के लिए बढ़ती मांग उस संकट की ओर इशारा करती है जिसकी तरफ भाजपा ने हम सभी को धकेल दिया है। मनरेगा के तहत काम की मांग आसमान छू रही है जिसे सरकार पूरा नहीं कर पा रही। और जब मजदूरों को काम मिलता है तो उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता, जिसके फलस्वरूप कई मज़दूर मनरेगा से कम दर पर काम करने को मजबूर हैं। भाजपा ने हमें हमारे देश को गरीबी और अभाव की ओर धकेल दिया है, और हिंदू राष्ट्रया राम राज्या अंधा उन्माद पैदा कर दिया है जो राम मंदिर के रूप में दिखता है, जिसका वायदा है कि इससे हम सब की परेशानियाँ ख़त्म हो जाएंगी ।

अगर एक बढ़ती अर्थव्यवस्था का लाभ सभी में साझा ना हो ो कोई भी कोई व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता और उस समाज का विकास नहीं हो सकता। जब तक ऐसा नहीं होता आर्थिक विकास एक छलावा ही रहेगा। मौजूदा स्थिति को बदलने के लिए हमें मिलकर लड़ना होगा।