प्रधानमंत्री मोदी: दमनकारी राज्य इज़राइल को समर्थन देना बंद करो, फ़िलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करो

भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 7 अक्टूबर 2023 को ट्वीट कर कहा: “इज़राइल में आतंकवादी हमलों की खबर से गहरा झटका लगा। हमारी संवेदनाएँ और प्रार्थनाएँ निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इज़राइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।” हम इस बयान की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं क्योंकि यह स्पष्ट रूप से फिलिस्तीनी लोगों के लगभग आठ दशकों से चल रहे राष्ट्रीयता के लिए संघर्ष के खिलाफ सरकार की एकतरफा स्थिति को इंगित करता है।

इज़राइल में हमास की कार्रवाइयों का एक ऐतिहासिक संदर्भ है जिस पर दुनिया को ध्यान देना होगा। ऐसा न करना इजराइल द्वारा फिलिस्तीनियों को बेरहमी से मारने के इतिहास को मिटाने के बराबर है; 1948 से फिलिस्तीन राज्य के अस्तित्व को नकारने के साथ ही इजराइल संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम यूरोपीय सरकारों के समर्थन से फिलिस्तीनी क्षेत्र पर लगातार आक्रामकता, दखल और कब्ज़ा करता आया है। इज़रायल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की युद्ध की स्थिति की घोषणा को विश्व स्तर पर इज़रायल के खुद की रक्षा करने के अधिकार के रूप में दिखाया जा रहा है, जबकि असल में यह हमास को नाहक आक्रामक साबित करने और इज़रायल को हत्या और दमन करने की खुली छूट को सही बताने का एक प्रयास है।

यह कहना गलत होगा कि हमास की कार्रवाइयों से इज़राइल में निर्दोष नागरिक प्रभावित होते हैं। 1948 में इज़रायली स्वतंत्रता की घोषणा के बाद से इज़रायल के प्रत्येक वयस्क ‘नागरिक’, पुरुष और महिला, को इज़रायल रक्षा बल में एक निश्चित अवधि सेवा प्रदान करने की अनिवार्यता है। हमास की कार्रवाई उन फिलीस्तीनी इलाकों में है जहाँ कब्जा कर लिया गया है, जहाँ अवैध इज़रायली निवासियों ने बल का उपयोग करके पूरे समुदायों को विस्थापित कर दिया है, उनके घरों और आजीविका को नष्ट कर दिया है, उनकी आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया है और उनके खुद के जल, ज़मीन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों तक के उपयोग से वंचित कर दिया है। इज़रायली निवासियों को ‘अपनी सुरक्षा’ के लिए हथियार रखने की अनुमति है और अपनी बस्तियों का विस्तार करने के लिए वे इनका इस्तेमाल कर फ़िलिस्तीनियों पर लगातार हमला करते हैं। कब्जे वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्र में बस्तियों की स्थापना और विस्तार अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत निषिद्ध है और युद्ध अपराध के बराबर है। 1967 से 600,000 से अधिक इज़रायली नागरिक कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में रहते हैं, और 4.9 मिलियन से अधिक फिलिस्तीनियों को प्रतिदिन अपनी आवाजाही पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है।

फ़िलिस्तीनियों ने अपने ऊपर हुई हिंसा के बावजूद दशकों तक शांतिपूर्ण रास्ता अपनाने का प्रयास किया है। वर्तमान स्थिति मूलत: फिलिस्तीनी लोगों पर हुई निरंतर हिंसा का परिणाम है। यह विदित है कि जब शोषण और हिंसा अपनी सीमा पार कर जाती है तो शोषित लोग पलटवार करते हैं और कड़ा प्रहार करते हैं। हमास की कार्रवाई के उद्देश्य और दृढ़ संकल्प की एकता ने इज़राइल की जासूसी और निगरानी मशीनरी के ध्यान में भी नहीं आई, जिसे दुनिया में सबसे क्रूर और तेज़-तर्रार माना जाता है। इस विवाद को केवल तभी हल किया जा सकता है जब इज़राइल और उसके पश्चिमी सहयोगी शांति चाहें ना कि युद्ध, स्वतंत्रता का सम्मान करें और कब्ज़ा रोकें।

हम भारत सरकार से आह्वान करते हैं कि हमास पर अपना कथन वापस ले, उसे फिलिस्तीन के लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दे और फिलिस्तीनी लोगों के निर्विवाद और बिना शर्त आत्मनिर्णय के अधिकार का सम्मान करे।

भारत सरकार को यह सुनिश्चित करने में कि इज़राइल के तथाकथित ‘खुद की रक्षा करने के अधिकार’ पर तत्काल रोक लगे और संयुक्त राष्ट्र द्वारा समयबद्ध तरीके से फिलिस्तीन विवाद को हल करते हुए फ़िलिस्तीनी लोगों के लिए मुल्क सुनिश्चित करने के संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में आगे बढ़ कर नेतृत्व करना चाहिए।

गौतम मोदी

महासचिव