सत्तावाद बनाम हमारा लोकतंत्र प्रेम
लड़ेंगे – जीतेंगे
23 जुलाई 2021 को अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन में शामिल हों
पिछले सात सालों में हमारे सभी लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला हुआ है – सभा और भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार, यूनियन बना सकने की स्वतंत्रता का अधिकार, कानून के समक्ष समानता का अधिकार, लिंग, नस्ल, जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव के ख़िलाफ अधिकार, शोषण के खि़लाफ अधिकार और इन सबसे सर्वोपरि जीने के हमारे अधिकार पर हमला हुआ है।
भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की निरंतर कार्रवाई जिसके परिणामस्वरूप 5 जुलाई को फादर स्टेन स्वामी की मौत हुई इसी का प्रतीक है। 84 वर्षीय जेसुइट पादरी को वैश्विक महामारी के बीच विधिविरुद्ध क्रिया – कलाप (निवारण) अधिनियम(यूएपीए) के तहत बार-बार परेशान किया गया, पूछताछ की गई, तलाशी ली गई और अंत में एक ‘आतंकवादी’ के रूप में गिरफ्तार कर जेल में फेंक दिया गया जहाँ उन्हें आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं से वंचित रखा गया। केंद्र सरकार द्वारा दर्ज की गई आपत्तियों के कारण उन्हें मेडिकल जमानत से वंचित रखा गया। महीनों की अपील के बाद, आखिरकार उन्हें जब अस्पताल ले जाया गया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बिना किसी साक्ष्य और बिना कोई मुकद्दमा चलाए सरकारी एजेंसियों ने षड्यंत्र कर उनकी हत्या कर दी। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने झारखंड के आदिवासियों की जमीन, उनके रोज़गार के अधिकार और उनके जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए खड़े होने का साहस किया।
पिछले सात वर्षों में, हमने अनगिनत मज़दूरों, ट्रेड यूनियन नेताओं, छात्रों, लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों, लेखकों और विद्वानों को यूएपीए और राजद्रोह अधिनियम सहित काले कानूनों के तहत गिरफ्तार होते देखा है। इन गिरफ्तारियों में से एक भी मुकद्दमे में सुनवाई पूरी नहीं हुई है। वे सभी लोग जो गिरफ्तार हुए हैं शोषितों के लिए, मज़दूर वर्ग के लिए खड़े हुए है। ये लोग लोकतंत्र की रक्षा में खड़े हुए। ये लोग भाजपा के ख़िलाफ खड़े हुए हैं। ये गिरफ्तारीयाँ विरोध को कुचलने, और लोगों में भय पैदा करने के उद्देश्य से की गई हैं।
शोषण का हथियार – फूट डालो और राज करो
भाजपा-आरएसएस के विचारकों को लगता है कि लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला कर विरोध को, असहमति को दबाया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा सरकार ने लेबर कोड के माध्यम से मज़दूरों के अधिकारों पर हमला किया, किसानों पर कृषि कानूनों के माध्यम से, वन अधिकार अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण कानूनों में लगातार संशोधन कर भूमि अधिकारों के हनन को बढ़ावा दिया। साथ ही साथ, एक ओर जहाँ भाजपा सरकार ने हर बजट में सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक कल्याण पर होने वाले सरकारी खर्च में कटौती की, वहीं इसी दौर में कॉर्पोरेट आय करों (इनकम टैक्स)में हमारे इतिहास में सबसे बड़ी कटौती हुई। इस ख़तरनाक महामारी के बीच भाजपा सरकार लोगों की सहायता करने से कन्नी काट रही है और राहत पर ख़र्च करने में कंजूसी कर रही है। अमीर और गरीब के बीच की खाई तेज़ी से बढ़ी है।
साथ ही, भाजपा सरकार ने विशेष रूप से मुसलमानों के साथ भेदभाव करने के लिए नागरिकता कानून में बदलाव किया। मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की कवायद में भाजपा सरकार ने ‘गोमांस प्रतिबंध’ से लेकर जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू करने तक सब कुछ किया। अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा सरकार ने सामाजिक रूप से वंचित जातियों के आरक्षण को बढ़ावा दे उन्हें ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का शिकार रहे, हाशिए पर जीने को मजबूर जातियों के ख़िलाफ खड़ा कर दिया है।
जब निजीकरण के ख़िलाफ ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के कर्मचारियों की हड़ताल की शक्ति का सामना करना पड़ा, तो भाजपा सरकार ने हड़ताल के अधिकार का अपराधीकरण करने के लिए आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश 2021 (इडीएसओ)कानून बनाया। हड़ताल का अधिकार मज़दूर वर्ग का एक अटूट लोकतांत्रिक अधिकार है, जो मालिक-मज़दूर संबंधों में शक्ति के असंतुलन को ध्यान में रखते हुए हमारे संविधान में निहित है। यह मज़दूरों का प्रतिरोध और अवज्ञा में अपनी श्रम शक्ति को वापस लेने का अधिकार है हर उस चीज़ के ख़िलाफ जो उसे अस्वीकार्य है। इस अध्यादेश से सरकार की मंशा बस इतनी नहीं है कि हड़ताल को रोक दे बल्कि इससे वह मजदूरों को यह संदेश देना चाहती है कि अगर वे सरकार का विरोध करने की हिम्मत करते हैं, तो उनका हश्र भी फादर स्टैन के जैसा होगा।
भाजपा यह जानती है कि सत्ता में उसका अस्तित्व बहुसंख्यक हिंदुत्व की आरएसएस विचारधारा के माध्यम से ही कायम रह सकता है और इसे पूंजीपति वर्ग के विस्तार तथा लोगों के अधिकारों के हनन और भेद-भाव के माध्यम से समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था को विभाजित किए बिना हासिल नहीं किया जा सकता है।
तुम नफरत की आग फैला सकते हो, पर हम घास हैं, तुम्हारे हर किए कराए पर उग आएंगे!
भाजपा सरकार द्वारा डराने-धमकाने के तमाम प्रयासों के बावजूद, जो लोग एक लोकतांत्रिक, भेदभाव रहित, विविधतापूर्ण और समतामूलक राष्ट्र में विश्वास करते हैं, जो प्रगति और विचारों की बहुलता में विश्वास करते हैं, वे भाजपा के ख़िलाफ और आरएसएस के एजेंडे के ख़िलाफ़ राष्ट्र भर में उठ रहे हैं।
भाजपा लोकतंत्र की हमारी इसी भावना और प्रगति और बहुलता की हमारी चाह से डरती है। वह एक ऐसी दुनिया की कल्पना ही नहीं कर सकते जहाँ लोग सभी बाधाओं के बावजूद विरोध करते हैं, एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए अपने विचारों की रक्षा करते हैं और इन सबसे बढ़कर स्वतंत्रता और लोकतंत्र के अपने विचारों की रक्षा के लिए सर्वस्व बलिदान कर देते हैं। मज़दूर वर्ग का आंदोलन एक लोकतंत्र में उसी तरह विकसित होता है जैसे वह इस लोकतंत्र को आकार देता है। लोकतंत्र की रक्षा करने और उसे आगे बढ़ाने की चुनौती आखिरकार मज़दूर वर्ग के कंधों पर ही टिकी है क्योंकि वह अपनी मुक्ति के संघर्ष में समाज को भी आकार देता है।
23 जुलाई 2021 को देश भर की ट्रेड यूनियनों ने हड़ताल के अधिकार पर हो रहे हमले के ख़िलाफ और ईडीएसओ को रद्द करने की मांग को लेकर देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है। लोकतांत्रिक अधिकार संगठनों, ट्रेड यूनियनों सहित जन संगठनों और आंदोलनों ने भी यूएपीए, राजद्रोह अधिनियम आदि को निरस्त करने की मांग करते हुए लोकतांत्रिक विरोध के अधिकार पर हमले के ख़िलाफ देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया है।
एनटीयूआई सभी ट्रेड यूनियनों और किसानों, महिलाओं, छात्रों, वंचित समुदायों के सभी संगठनों तथा जन आंदोलन और लोकतांत्रिक अधिकार संगठनों का आह्वान करता है कि इस शुक्रवार 23 जुलाई 2021 को निडर फादर स्टेन की याद में एकजुट हो कर लोकतंत्र की रक्षा करने, मज़दूरों की हड़ताल करने के अधिकार की रक्षा करने, विरोध करने के हमारे अधिकार की रक्षा करने और इन सबसे बढ़कर एक बहुल और प्रगतिशील भारत के विचार की रक्षा करने के लिए प्रदर्शन करें।