मोदी सरकार के मज़दूर अधिकारों पर वार के बीच कॉट्रैक्ट सफाई कर्मियों की फिर जीत – बहाली होगी परमानेंट

बृह्नमुम्बई महानगर पालिका (बृ.म.पा) द्वारा 580 कॉट्रैक्ट सफाई कर्मचारियों के परमानेंट होने के जश्न में न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (एनटीयूआई) अपनी संबद्ध यूनियन कचरा वहातुक श्रमिक संघ (केवीएसएस) और उसके सदस्यों के साथ है।

अभी-अभी उपलब्ध हुए इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल, मुंबई के दिनांक 22 मार्च 2021 के आदेश के अनुसार विजयी मजदूरों को उस वर्ष से परमानेंट माना जाएगा जिस वर्ष में उन्होंने पहली बार 240 दिन काम पूरा किया था। बृ.म.पा द्वारा चलाई जा रही ठेका प्रथा को यह आदेश पूरी तरह से अवैध करार देता है।

हमारे राष्ट्र में नगरपालिक सफाई कर्मचारी ऐतिहासिक रूप से वंचित दलित समुदाय से आते हैं। इन्हें उन कॉट्रैक्टों के माध्यम से काम पर रखा जाता है जो उन पर स्वयंसेवक, मानदेय श्रमिक, गैर सरकारी संगठन या कुटुम्बश्री के स्वयंसेवक या कॉट्रैक्ट श्रमिक होने का ठप्पा लगा देते हैं। ये नाम सुनियोजित रुप से इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि उन्हें कानून में प्राप्त अधिकार जैसे कि साप्ताहिक छुट्टूी, बीमारी में छुट्टी और वार्षिक छुट्टी, ओवरटाइम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा से वंचित रखा जा सके। ये मज़दूर भयावह रूप से असुरक्षित परिस्थितियों में काम करते हैं और समान काम करने वाले परमानेंट मज़दूरों से इनकी मज़दूरी बहुत कम होती है।

कोविड महामारी और इससे पहले भी हमारे शहरों और कस्बों में आई मुसिबतों से लड़ने में हमारे सफाई कर्मी पहली पंक्ति में खड़े रहे हैं। वे अपनी जान जोखिम में डाल कर हमारे आस-पास की जगह को हर कचरे से साफ रखने का काम करते हैं इसमें से ज्यादातर कचरा जहरीला और खतरनाक होता है। फिर भी मज़दूरों में उनकी हालत सबसे बदहाल है।

यह सब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कोविड महामारी के दौर में हो रहा है, वे और उनकी भाजपा सरकार सीना तान कर झूठ बोलते हैं कि इस कठिन समय में वे ‘कोविड योद्धाओं’ के साथ खड़ें हैं जबकि सच्चाई यह है कि सरकार ने खुले हाथों से स्वच्छ भारत अभियान पर पैसा खर्च किया है जो ज्यादातर निजी ठेकेदारों के जेबों में गया है।

इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल का यह आदेश 580 श्रमिकों के अपने हक़ की लड़ाई छेड़ने के 22 साल बाद आया है। यह मामला 7 साल श्रम आयुक्त के सामने चला और उसके बाद 15 साल ट्रिब्यूनल में बीत गए। यह बात कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों को बता दें कि मजदूरों की आधी जिंदगी बस यहां तक पहुंचने में चली गई है। जबकि बिलकुल एसे ही मामलों में कचरा वाहतुक श्रमिक संघ ने पहले ही 2006 और 2017 में मिसाल कायम कर रखी थी जब सुप्रीम कोर्ट ने क्रमशः 1200 और 2700 कॉट्रैक्ट सफाई कर्मचारियों को परमानेंट किए जाने को सही ठहराया था। ऐसी ही कई मिसालें हमारे सामने होने के बावजूद भी यह आश्चर्यजनक नहीं होगा यदि एक घटिया राजनीतिक वर्ग और एक मतलबी नौकरशाही इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल के इस आदेश को चुनौती दे और इसे उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक घसीट कर और 10 साल बरबाद कर दे।

नियमित रूप से 8 घंटे के काम के लिए सम्मानित मज़दूरी के साथ-साथ हफ्ते में एक छुट्टी, बीमार में छुट्टी, छुट्टी के लिए मज़दूरी, स्वास्थ्य लाभ और रिटायरमेंट फंड में योगदान – के जो अधिकार इस आंदोलन के माध्यम से जीते गए हैं यही वे अधिकार हैं जिसे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा सरकार लेबर कोड के सहारे छीनने की कोशिश कर रहे हैं।

जो लोग इस उम्मीद में मजदूर वर्ग को न्याय दिलाने में देरी करना चाहते हैं कि मजदूर थक कर हार मान लेंगे, जान लें कि मज़दूर आंदोलन कभी हार नहीं मानेगा।

जो लोग यह सोच बैठे हैं कि वे मजदूरों के अधिकारों को खत्म करने में सफल हुए हैं, वे चेत जाएँ, यह संघर्ष और मज़दूरों का हर संघर्ष उनकी लेबर कोड को मिट्टी में मिला देगा।

यह जीत समान काम के लिए समान मज़दूृरी की जीत है, मज़दूरों के मौलिक अधिकारों की जीत है और उनके प्रति होते आ रहे भेदभाव की हार है।

हमारे जश्न का संदेशा सब तक साफ-साफ पहुंचे कि लोकतांत्रिक और जुझारू मजदूर वर्ग हार नहीं मानेगा। यह अन्याय के आगे नहीं झुकेगा। सरकार और पूंजी के दमन और प्रताड़ना के दबाव से हमारा इरादा नहीं डिगने वाला। न्याय, निष्पक्षता, गरिमा और समानता की हमारी यह लड़ाई जारी रहेगी – हमारा संघर्ष जारी रहेगा।

याद रहे यह लड़ाई 22 लंबे साल तक चली – मज़दूर वर्ग का संघर्ष इसी तरह जुझारू और अथक है।

गौतम मोदी

महासचिव